Manmohan Singh Biography in Hindi: पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह की शिक्षा, करियर, यहां पढ़ें डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के 13वें प्रधानमंत्री, अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका जाना देश की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत का संकेत है। शांत स्वभाव, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता के साथ उन्होंने भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एक मामूली से अर्थशास्त्री से लेकर दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री बनने तक का उनका सफर बहुत खास था।
Quick Information : Manmohan Singh Biography in Hindi
Aspect | Details |
---|---|
Full Name | Dr. Manmohan Singh |
Date of Birth | 26th September 1932 |
Place of Birth | Gah, Punjab (now in Pakistan) |
Political Party | Indian National Congress |
Prime Minister Tenure | 2004 to 2014 |
Notable Positions | Governor of RBI, Deputy Chairman of Planning Commission, Finance Minister |
Education | M.A. in Economics (Punjab University), D.Sc. in Economics (Oxford University) |
Key Achievements | Economic reforms, Indo-US Nuclear Deal, Liberalization of Indian economy |
Challenges | Corruption scandals (2G, Coalgate), Opposition from within Congress, perception of weak leadership |
Legacy | Economic growth, global influence, integrity, and dedication to national interest |
Famous Tribute | Former U.S. President Barack Obama described him as wise, thoughtful, and honest |
अकल्पनीय नेता
डॉ. मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना एक अजीब सा था। वे एक प्रमुख राजनीतिज्ञ नहीं, बल्कि एक सम्मानित अर्थशास्त्री और ब्यूरोक्रेट थे। आरबीआई के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्त मंत्रालय के सचिव के रूप में उनके पास महत्वपूर्ण अनुभव था। हालांकि, कांग्रेस पार्टी के कुछ सदस्य यह मानते थे कि उनके पास एक गठबंधन सरकार चलाने का राजनीतिक अनुभव नहीं है।
2004 में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से मना किया और डॉ. सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी। शुरुआत में कांग्रेस में कुछ विरोध था, लेकिन सोनिया गांधी ने डॉ. सिंह को चुना, क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि वे देश को अच्छे से चला सकते हैं। डॉ. सिंह का शांत और ईमानदार व्यक्तित्व भारतीय राजनीति के लिए एक बदलाव था।
इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील: एक अहम मोड़
डॉ. सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक अहम मुद्दा था इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील। डॉ. सिंह ने इसे भारत के ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए जरूरी माना। लेकिन इस डील का कांग्रेस के कुछ सहयोगी दलों, खासकर वामपंथी पार्टियों, ने विरोध किया। वे मानते थे कि इस डील से भारत की संप्रभुता पर खतरा हो सकता है।
हालांकि, डॉ. सिंह ने डील को लेकर अपनी स्थिति पर अडिग रहे। उन्होंने पार्टी और सरकार पर दबाव के बावजूद इस डील को स्वीकार किया। वामपंथी दलों ने समर्थन वापस लिया, लेकिन डॉ. सिंह ने अपनी बात से नहीं हटे। अंत में डील को मंजूरी मिली, जिससे उनकी राजनीतिक मजबूती साबित हुई।
यूपीए-2 में चुनौतियाँ और भ्रष्टाचार के आरोप
2009 में जब कांग्रेस पार्टी फिर से सत्ता में आई, तो डॉ. सिंह की दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने की शुरुआत बहुत उत्साहजनक थी। लेकिन जल्दी ही भ्रष्टाचार के आरोपों और स्कैम्स ने उनके शासन को घेर लिया। सबसे बड़ा विवाद 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का था, जिसमें आरोप लगे कि सरकार ने टेलीकॉम लाइसेंस को गलत तरीके से बांटा था।
डॉ. सिंह पर यह आरोप लगे कि वे भ्रष्टाचार के मामले में सख्त नहीं थे। उनका नाम भी कई भ्रष्टाचार मामलों में आया, जैसे कोल घोटाला। हालांकि, वे खुद ईमानदार थे, लेकिन उनके मंत्रियों के भ्रष्टाचार ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया। विपक्ष ने उन पर कमजोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगाया।
नरेंद्र मोदी का उदय और यूपीए-2 का अंत
2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी, जो गुजरात के मुख्यमंत्री थे, एक मजबूत और लोकप्रिय नेता के रूप में सामने आए। मोदी ने खुद को एक भ्रष्टाचार मुक्त विकल्प के रूप में पेश किया, जो यूपीए सरकार की छवि को चुनौती दे रहा था। डॉ. सिंह और उनकी सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी के अंदर भी असंतोष बढ़ने लगा था। पार्टी के कुछ सदस्य डॉ. सिंह को हटाने की बात करने लगे थे।
आखिरकार, कांग्रेस पार्टी को 2014 में ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा, और बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की। डॉ. सिंह की सरकार का अंत हुआ, और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इस प्रकार, यूपीए-2 का युग समाप्त हो गया।
विरासत: एक ईमानदार और समझदार नेता
डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत बहुत ही जटिल है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारत की अर्थव्यवस्था में कई सकारात्मक बदलाव हुए। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को लिबरलाइज किया और देश को वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनका उद्देश्य हमेशा भारत के आर्थिक विकास और सामाजिक भलाई को आगे बढ़ाना था।
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लेकिन उनकी दूसरी पारी में भ्रष्टाचार के आरोपों और उनकी कमजोर छवि ने उनके कार्यकाल को प्रभावित किया। फिर भी, उनका योगदान और देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता हमेशा याद रखी जाएगी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी अपनी किताब में डॉ. सिंह की तारीफ की थी, उन्हें एक समझदार, विचारशील और ईमानदार नेता बताया।
निष्कर्ष: एक विचारशील नेतृत्व की विरासत
डॉ. मनमोहन सिंह का जाना भारतीय राजनीति में एक युग का अंत है। वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने विचारशीलता, ईमानदारी और शांतिपूर्ण तरीके से देश का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में, भारत ने आर्थिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, हालांकि उनके शासन में कई विवाद भी रहे।
डॉ. सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण रहेगा, और उनकी नेतृत्व क्षमता और कार्यों को भविष्य की पीढ़ियाँ याद रखेंगी। उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि एक मजबूत और ईमानदार नेता वह है जो देश के हित में कड़ी मेहनत करता है, चाहे राजनीतिक हालात जैसे भी हों।
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